
कोई भी व्यक्ति किसी भी देश में शरणार्थी बनकर रहना पसंद नहीं करता. लेकिन यह सब मजबूरी के चलते उन्हें करना पड़ता है. दुनियाभर में ना जाने कितने लोगों ने अपनी जमीन-जायदाद सब गंवा दिए और वह दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर हुए. उन्हें अपना मुल्क छोड़कर दूसरे मुल्क में शरण लेनी पड़ी. 20 जून, 2020 को वर्ल्ड रिफ्यूजी डे के मौके पर हम आपको कुछ ऐसी फिल्मों के बारे में बता रहे हैं, जो आपको शरणार्थियों के दर्द के बारे में बताएंगे.

बीस्ट ऑफ नो नेशन
2015 में रिलीज हुई इस अमेरिकन मूवी में दिखाया गया कि एक मासूम लड़का अगू एक छोटे से गांव में अपने परिवार के साथ रहता है. लेकिन अपने देश को जंग में बचाने के लिए वह छोटी उम्र में सैनिक बन जाता है. इस फिल्म को अमेरिका के थियेटरों में जगह नहीं मिली और इसको बॉयकट का सामना करना पड़ा. बाद में इस फिल्म को नेटफ्लिक्स पर रिलीज किया गया.

फर्स्ट दे किल्ड माई फादर
2017 में रिलीज हुई यह फिल्म 5 साल के ऐसे बच्चे की कहानी है जिसका नाम उंग है. इस बच्चे को जबरदस्ती सैनिक बनने के लिए मजबूर होना पड़ता है. भले ही फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर कुछ खास कमाई ना की हो. लेकिन इस फिल्म को काफी अच्छी प्रतिक्रिया मिली थी. फिल्म को कंबोडियन सिनेमा की तरफ से ऑस्कर के लिए भी भेजा गया था. हालांकि इस फिल्म को नॉमिनेशन में जगह नहीं मिली.

बॉर्न इन सीरिया
नवंबर, 2016 में रिलीज हुई इस फिल्म में सीरिया में चल रही जंग को दिखाया गया था. 2011 के आंकड़ों के मुताबिक, लगभग 9 मिलियन लोगों को सीरिया में अपना घर छोड़ना पड़ा था, जिनमें आधे से ज्यादा बच्चे थे.